अनोखी किस्मत
भाग 10
अभी तक आपने पढा,सोनिया को वीरमति काकी राधिका और रघुनंदन के लिए उल्टा सीधा बोल कर चली जाती।
तभी मिठ्ठी नंदू के घर जाने के लिए पूछती है।
मिठ्ठी बोली तो सोनिया गुस्से में बोली ,!मैंने कहा ना कि नन्दू के घर नहीं जाएगी तो बस नहीं जाएगी और मिठ्ठी का हाथ पकड़कर सोनिया घर के अंदर ले गई।
यह सब देख लिया राधिका ने देखा सोनिया दरवाजा बंद करके अंदर चली गई।
राधिका को सोनिया का व्यवहार अच्छा नहीं लगा वह मन मसोस कर रह गई।
राधिका का मन किसी काम में नहीं लग रहा था शाम होने वाली थी तभी वीरमति काकी गांव के कुछ बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के साथ रधुनंदन के घर आ पहुंचे ।।उनमें से एक बुजुर्ग बोले तो" प्रधान जी आप ने क्या फैसला लिया है।" रघुनंदन जी बोले!" नन्दू उस लड़की को माँ मानता है और वह भी पूरी तरह ममता लुटाती है ।
मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा कोई भी रास्ता दिखाई नहीं दे रहा ।"हम लोग बात करते है।
तभी दीनू काका भी खेतों से आ पहुंचे। और लोग पहले से मौजूद थे।
दीनू काका बोले "मैं बुलाता हूं राधिका बिटिया को!"
दीनू काका ने आवाज दी, राधिका बिटिया बाहर आना!
डरी सहमी सी राधिका सिर पर पल्लू किए हुए बाहर आई ।
दीनू काका ने सबके सामने पूछा! क्या तुम बच्चे से सचमुच प्यार करती हो?
राधिका ने अपनी गर्दन नीचे करते हुए हांँ में सिर हिला दिया ।
तभी वीरमति बोल पड़ी तो क्या "किसी भी औरत को तुम नन्दू की मां बना कर इस घर में ले आओगे क्या?
पता नहीं कहांँ से आई है कौन है ऐसी बहुत सारी औरतें ऐसी ही घूमती रहती हैं। अपना मतलब पूरा होने पर पता नहीं कब बच्चे और ठाकुर साहब का गला काट कर चलती बने पता नहीं।
अब सब सीमा से बाहर हो गया । रघुनंदन जी बोले "आप सब एक मासूम पर झूठे लांछन लगा रहे है ।
वह मेरे बच्चे की मां है और तो मैंने अपने बेटे को इतना खुश नही देखा है । अगर आप लोगों को रिश्ते से ही मतलब है तो ठीक है और इतना कहकर अंदर गए,और बाहर आकर मुट्ठी भर सिंदूर राधिका की मांग में भर दिया ।और बोले लो हो गई अब मेरी पत्नी ।
अब तो आप लोगों को कोई कष्ट नहीं होगा आप यही चाहते थे ना ?
"आप लोग कृपया करके यहां से प्रस्थान करें। मैं ही खुद को व्यवस्थित करना चाहता हूं और इतना कहकर सब लोग वहां से चले गए"।
राधिका को क्या हुआ वह तो ऐसे ही जढवत खड़ी रह गई,और चक्कर खाकर गिर गई।
रजिया ठंडा पानी लेकर आई और राधिका के मुंह पर छींटे मारें।
राधिका को होश आया तो वह रोने लगी।लेकिन यह सब जो हुआ उसे कुछ समझ नहीं आया, पता नहीं क्या लिखा है। मेरी किस्मत में राधिका रोए जा रही थी।
रजिया बोली !"चुप हो जाओ बिटियाँ अब रोने से कुछ नहीं होने वाला, यह समाज है बिटिया! यह लोग चैन से जीने नहीं देते। अगर ठाकुर साहब तुम्हारी मांग नहीं भरते तो यह लोग ना जाने कौन-कौन से लांछन लगाते तुम पर शायद यही नियति थी।और यही उस ऊपर वाले की मर्जी थी।"
"राधिका बोली लेकिन इन सब में मेरा क्या दोष है मैं तो सिर्फ मुन्ना की मां बन कर रहना चाहती थी।"
राधिका गुस्से में मुझे तो जबरदस्ती किसी की पत्नी बना दिया गया है, मैं कोई बिकाऊ चीज हूं जो चाहे वह मेरा इस्तेमाल कर ले। कि मैं किसी की पत्नी बन जाऊंगी और मेरा भाग्य है राधिका गुस्से से मै किसी की पत्नी बनकर नहीं रहूंगी अपने घर लौट जाऊंगी, वह गुस्से से नल पर गई और तीन ,चार बाल्टी अपने सिर के ऊपर से डाल दो और बोली रजिया काकी देखो सिंदूर धुल गया , अब में किसी की पत्नी नहीं हूँ।
माना मेरे घर में कोई सदस्य नहीं है मेरे घर मैं कम से कम कोई मुझ पर लांछन तो नहीं लगाएगा।
रजिया बोली "उठो बेटा! कपड़े बदल लो अभी तुम्हारा मन अच्छा नहीं है थोड़ा शांत दिमाग से सोचना"?अभी तुम गुस्से में हो इसलिए ऐसा कह रही हो बाद में ठंडे दिमाग से सोचना।
राधिका कपड़े बदल कर अपने कमरे में जाकर लेट गई।
इतने में नन्दू बाहर से दौड़ता हुआ आया और बोला "माँ रोज की तरह बोल क्यों नहीं रही हो और इस तरह से अंधेरे में क्यों बैठी हो चलो ना मुझे भूख लगी है? खाना बना दो ।"
बेटे की बात सुनकर रघुनंदन जी बोले बेटा नन्दू इधर तो आना ।
तो वह कहने लगा कि आपने मुझे क्यों बुलाया ?
रघुनंदन जी बोले
"बेटा आज तुम मेरे पास रहो आज तुम्हारी मां की तबीयत ठीक नहीं है ।ना तो उसे आराम करने दो और खाना मैं बना देता हूं" ।
ठीक है "मुझे पता नहीं था आज मां की तबीयत ठीक नहीं है उसे परेशान नहीं करूंगा"।
रघुनंदन जी बोले"तू अभी बाहर दीनू काका के पास खेल लेकिन मां के पास मत जाना "।
तो नंदू रघुनंदन जी की बात सुनकर
बाहर चला गया और कहने लगा ठीक है मैं बाहर जाकर शेरू के साथ खेलने लगा ।
रघुनंदन जी ने खाना बना कर
दीनूकाका और नन्दू को खाना खिला दिया।
नंदू से बोले जा अपनी मां को भी खाना खिला दे
नंदू बोला तो ठीक है बाबा
राधिका के पास पहुंचकर बोला ।
"
माँ खाना खा लो"!
"नहीं बेटा मुझे भूख नहीं है। खाना वापस ले जाओ"।
"ठीक है मांँ"।
"बाबा !मां को भूख नहीं है उन्होंने खाना खाने से मना कर दिया"।
रघुनंदन राधिका के पास पहुंचे और कहने लगे "माफ कीजिए जो हुआ वह होना नहीं चाहिए था वह सब क्रोध वश हुआ मुझे पता है कि आज आपको मेरी वजह से बहुत कष्ट हुआ लेकिन कृपया करके उसका गुस्सा खाने पर ना उतारिए।"
क्रोध से राधिका बोली" ये सब आप ने जानबूझकर किया है आपके मन में यह बात कैसे आई थी' कि मैं आपसे विवाह कर सकती हूं मैं किसी की विधवा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी मुझ पर आकर अपना अधिकार बना ले। मै अपने पति से अब तक बहुत प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी और मैं कल ही आपका घर छोड़ कर चली जाऊंगी "।
उस रात ना राधिका ने खाना खाया ना रघुनंदन जी ने दोनों की रात असमंजस में कटी।
क्या अब राधिका रघुनंदन जी का घर छोड़ कर जा पाएगी या वही नंदी के प्यार में बन कर रह जाएंगी देखिएगा क्या होता है अगली सुबह आप लोगों अपने सुंदर लाइक और कमेंट से मेरा हौसला बढ़ाइए आपके लाइक और कमेंट मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद
डॉ. रामबली मिश्र
18-May-2023 01:25 PM
👏👌
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Natasha
14-May-2023 07:40 AM
खूब
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Gunjan Kamal
14-May-2023 06:56 AM
बहुत खूब
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